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11व० बहुत से गं० गुंथीहुई वे० वेष्टित पू० पूरीहुई सं• परस्पर मीलीहुइ च. चार प्रकार की म० माला से ,
क०कल्पवृक्ष समान अ० अलंकृत वि० विभूषित क किये॥५१॥ त० तब से उन ज• जमाली ख०क्षत्रिय कुमार का पि० पिता को० कौटुम्बिक पु० पुरुष को स० बोलाकर ए० ऐसा व० बोला खि शीघ्र भो भो दे० देवानुप्रिय अ० अनेक खं० स्थंभ शत से सरखीहुई ली० लीलासे ठिरही हुई सा० पुतलिये ज० जै रा० रायप्रश्नीय में वि० विमान बर्णन जा जावत् म मणि र० रत्न धं० घंटिका जा० जाल प० सहित
मउडं पिणडेति किं बहुणा गंथिमवेढिमपूरिमसंघातिमेणं चउठिरहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसियं करेइ ॥ ५१ ॥ तएणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्सपिया कोडुबिय पुरिसे सद्दांवेइ २ ता, एवं वयासी खिप्पामेव भी देवाणुपिया ! अणेगखंभसयसण्णिविटुं लीलट्ठियसालिभंजियागं जहा रायप्पसेणइजे विमाणव
ण्णओ जाव माणरघणघंटियाजालपरिक्खित्तं पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं भावार्थ के शृंगार का वर्णन किया वैसे है। यहां सब कहना. अनेक प्रकार के रत्नजडित मुकुट धारन किये, पुष्पों -
की माला परस्पर गुन्था हुई, वंश शलाका में परोई हुई, परस्पर संयुक्त करके बनाइ हुई व चोली की समान है ॐगुंथी हुई ऐसी गर मालाओं से कल्पवृक्ष समान सुशोभित किये और अलंकारों से विभूषित किये।।५।। फीर
जमाली के पिता कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा बोले कि अहो देवासुप्रिय ! अनेक स्थंभ से वनी
पंचांग विवाह पण्णति (भगवती ) सूत्र 48862
नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 98817