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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
48. पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
48 ॐ नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 4000
सिं० निर्गुण्डी के पुष्प छि छेदेहुवे सु० मोती की मात्रा प० सरीखी सु० पुत्रवियोग दू० दु:सह अं० अश्रु वि० गिराती ए० ऐसा व० बोली ए०यह अहमको ज० जपाली ख० क्षत्रिय कुमार को ब० बहुत ( ति० तिथि में प० पर्व में उ० उत्सव में ज० पूजा में छ० महोत्सव में अ० पीछे दः दर्शन भ० होगा ऊ० ऊसीसे के मू० मूल में ठ० रखे ॥ ५० ॥ त तब तु० उन ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार के अ० | माता पिता दो दो वक्त उ० उत्तरदिशि में सी० सिंहासन र० बनाकर ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार अंहिं विणिम्मुयमाणी २ एवं वयासी एसणं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहू तिहीसुय पव्वणीसुय उस्सवेसुय जण्णे सुय छण्णेसुय अपच्छिमे दरिसणे भविस्संती तिक ऊसीसमूले वेइ ॥ ५० ॥ तणं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स अम्मापियरो दोच्चंपि उत्तरात्रक्कमणं सीहासणं रयावेति २ ता जमालिं खत्तियकुमारं माला समान पुत्र त्रियोग से दुःसह अश्रु वर्षाती हुई ऐसा कहने लगी कि इन जमाली के वस्तु रूप केशाग्रका हम को उत्तम तीथियों में, दीपावली प्रमुख मंगल पर्व में, नागादि देव की पूजा में व इन्द्रोत्सवादि लक्षण में अंतिम दर्शन होगा यों कहकर अपने उसीसे नीचे उस रखे ॥ ५० ॥ फीर जमाली के | माता पिताने उत्तर दिशा की तरफ सिंहासन बनाकर उसपे जमाली कुमार को बैठा कर पुनःसोने रूपे के कलश से स्नान कराया. पांख जैसे कोपल, सुगंधि व कषाय रंगवाला वस्त्र से गात्र पंडा सर्वोचम ॐ
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