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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
ॐ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
| का० नापित को ए० ऐसा व० बोले तु० तुम दे० देवानुप्रिय ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार के ब० बहुत ज० यत्ना से च० चार अंगुल व० वर्जकर नि० दीक्षायोग अ० अंग्र केश क० कापो ॥ ४८ ॥ त० तब
4 नववा शतक का तेत्तीसका उद्देशा -
से० वह का० नापित ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार के पि० पिता से ए० ऐसा बु० बोलाया ह० दृष्ट | ३ १३१७ तुष्ट क० करतल जा० यावत् ए०. ऐसा व बोला सा० स्वामिन् त० तथा इति आ० आज्ञा वि० विनय से १० वचन प० सुनकर सु० सुगंध गं० गंधादक से ह० हस्त पांव प० धोकर सु० शुद्ध अ० आठ खत्तियकुमारस्स पिया तं कासवर्ग एवं वयासी तुम्मं देवाणुप्पिया ! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स परेणं जत्तणं चउरंगुलवजे निक्खमणप्पओगे अग्गकेसे कप्पेह तएण से कासवए जमालिस खात्तयकुमाररस पिउणा एवं वृत्तेसमाणे हट्ट तुट्ठे करयल जाब एवं सामी ! तहत्ति आपाए विणणं वयणं पडिसुणेइ २ त्ता सुरभिणा गंधोदएणं हत्थपाए पक्खालेइ, २ त्ता सुद्धाए अटुपडलाए पोत्तिए मुहं बंधइ २ ता { बोले कि अहो देवानुप्रिय ! बहुत यत्ना पूर्वक चार अंगूल प्रमाण स्थान छोड़कर दीक्षा योग्य अग्रकेश काप ॥ ४८ ॥ वह नापित भी जमाली के पिता के वचनों सुनकर बहुत हर्षित हुवा और हस्तद्वय { जोडकर बोला कि ' तथा इति' इस तरह करके विनय से वचनों सुनकर सुगंधित पानी से हस्त पान का प्रक्षालन किया, और आठ पडलवाली मुख वस्त्रिका मुखपे वांत्री, और बहुत यत्ना पूर्वक }