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शब्दार्थ उन ज. जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र के पि० पिताने को कौटुंबिक पुरुष को म० बोलाये ए. ऐसा व० बोले .
खि० शीघ्र भो० भो दे० देवानुप्रिय सि. श्रीधर से ति० तीन स० लाख ग० लेकर दो दो ल० लाख से कु०कुत्रिक की दुकान से र रजोहरण ९०पात्र आ०लायो स० लाखसका नापित को स०बोलावो ॥४॥ ततब से०वह को कौटुम्बिक पुरुष जजमाली ख० क्षत्रिय कुमार के पि० पिता से बु० वोलाया हुआ हर हृष्ट तुष्ट क० करतल जा. यावत् प० सूनकर खि० शीघ्र मि० श्रीघर मे ति तीन स० लाख त• तैसे जा० यावत् का. नापित को स० बोलाया ॥ ४६ ॥ त० तब मे० वह का० नापित ज. जमाली ख०,
सद्दावेइ सद्दावेइत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साइं गहाय दोहिं सयसहस्सेहिं कुत्तियारणाआ रयहरणंच पडिग्गहंच आणेह सयसहस्सेणं कासगं सहावेह ॥ ४५ ॥ तएणं से कोडुबियपुरिसे जमालिस्स खत्तियकुमारस्सपिउणा एवं वुत्तेसमाणे हट्टतुटुकरयल जाव पडिसुणेत्ता,
खिप्पामेव सिरिघराओ तिण्णि सय सहस्साइं तहेव जाव कासवगं सहावेइ ॥ ४६॥ भावार्थको बोलाये और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! लक्ष्मीभंडार में से तीन लक्ष सौनये लेकर दोलक्ष सोनये
७ के कृत्रिक की दुकान से रजोहरण पात्रादि लावो और एक लाख सोनये में से नापित बोलाओं ॥ ४५ ॥
कौटुबिक पुरुषों जमाली-क्षत्रिय कुमार के पिता की पास ने ऐसी बात सुनकर हृष्ट तुष्ट यावतू आनंदित है ।
पंचमांम विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र १
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___eagk नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा 42