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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
करतल ज० जय वि० विजय से व० बधाकर ए० ऐसा व० बोले भ० कहे जा० पुत्र किं० क्या दे० देवे किं० क्या प० विशेषदेवे कि० किससे ते तेरा अ० अर्थ ॥ ४३ ॥ त० तब से वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार अ० माता पिता को ए ऐसा व० दोला इ० इच्छताहूं अ० मात पिता कु० कृषिक की दुकान से २० रजो, रण प० पात्र आ० लाटे को का० नापित को स बोलाने को ॥ ४४ ॥ त तब से ०
एणं वद्धावे २ ता एवं क्यासी भण जाया ! किं देमो किं पयच्छामो किंणा वा ते अट्ठो ? ॥ ४३ ॥ एणं से जमाली खाचियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासीइच्छामिणं अम्मयाओ ! कुत्तियावणाओ रयहरणंच पडिग्गहंच मणिउं कासवांच सद्दाविउं ॥ ४४ ॥ तएणं से जमालिस्त खत्तिय कुमारस्स विद्या कोडुंबिय पुरिसे
शब्दों से वधाये. वधाकर ऐसा बोले कि अहो पुत्र ! हम तुझे क्या देवे ? तुझे किस वस्तु से मतलब है { सो कहे ? ॥ ४३ ॥ तत्र जमाली क्षत्रिय कुमार वोले कि अहो मात पिता ! कृत्रिके की दुकान से रजोहरण व पात्र लाने का वनपिन बोलने का मैं इच्छता हूं ॥ ४४ ॥ फीर जमाली के पिताने कौटुम्बिक पुरुषों १ समस्त स्वर्ग मृत्यु व पाताल इन तीनों लोक में मीलती हुई वस्तु देवाधिष्ठित से जिस की दुक कृत्रिक दायक कहते हैं.
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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