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शब्दार्थ टुम्बिक पुरुष स० तैसे जा. यावत् प० पीछी देते हैं त० तब तं० उन ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार
१०१ को अ० मातापिता सी. सिंहासनपे पु० पूर्व तरफ नि० बेठाकर अ० आठ स० शत सो० सुवर्णके कर
कलश ए. ऐसे ज० जैसे रा० रायपश्नीय में जा० यावत् अ० आठ स० शत भो० मृत्तिका क० कलश म. सर्व ऋद्धिसे जा० यावत् म• बडेशब्दसे म• बडा नि निष्क्रमण अ० अभिषेकसे अ० सिंचकर क०
पुरिसा तहेव जाव पञ्चप्पिणंति, तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो सीहासणवरांस पुरत्थाभिमुहं निसीयावेइ, निसीयावेत्ता, अट्टसएणं सोवणियाणं कलसाणं, एवं जहा रायप्पसेणीए जाव अट्ठसयाणं भोमेजाणं कलसाणं सविड्डीए जाव महया
खेणं महया २ निक्खमणाभिसेगेणं आभिसिंचते २ ता करयल जाव जएणं विज. भाव विस्तीर्ण दीक्षा का उत्सव व अभिषेक सज्ज करो. और ऐसा कार्य करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो
॥ ४२ ॥ कौटुम्बिक पुरुषोंने ऐसा कार्य करके उन को उन की आज्ञा पीछी दे दी. उसी समय उन जमाली क्षत्रिय कुमार के मातपिताने जमाली कुमार को पूर्वाभिमुख से सिंहासन पर बैठाये, एकसोआठ
सवर्ण के कलश, एकसो आठ चांदिके कलश, वगैरह रायमसेणी सब में कहे मुजब यावत् एकसो पाठ 1 मृत्तिकाके कलश में शुद्ध पानी भरकर अभिषेक किया. और हस्त जोडकर यावत् जय हो विजय हो ऐसे
843 पंचम्पंग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
48 नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 4.88