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शब्दार्थ को • कौटुम्धिक पुरुषों को स० बोलाकर ए० ऐसा व० बोले दे० देवानुप्रिय ख० क्षत्रिय कुंड ग्राम न०*
र को स० आभ्यंतर बा. बाह्य आ. छंटकाव म. संमार्जन उ. लिंपनादि ज. जैसे उ. उववाइ में जा. यावत् प० पीछी देते हैं ॥४१॥ त० तब से उन ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार का पि० पिता दो. दुसरीवक्त कौ० कौटुम्विक पुरुप को स० बोलाकर १० ऐसा व. बोले खिम शीघ्र दे० देवानुप्रिय ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार का म० वडा द्रव्यवाला म. बहुमूल्य म० बहुत योग्य वि० बडा णि निष्क्रमण अ० अभिषक उ स्थापना करो ॥ ४२ ॥ त० तब ते. वे को.
पुरिसे सहावेइ २ त्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! खात्तयकुंडग्गामं नयरं साभंतर बाहिरियं आसियसम्मजिओवलित्त जहा उववाइए जाव पच्चाप्पणंति ॥ ४१ ॥ तएणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चंपि कोडुंबिय पुरिसे सहावेइ सद्दावेइत्ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स
महत्थं महग्धं महरिहं विपुल णिक्खमणाभिसेयं उवट्ठावेह ॥४२॥ तंएणं ते कोडंबिय भावार्थ
पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! क्षत्रिय कुंड नगर की बाहिर व अंदर सब स्थान स्वच्छ कराकर, सुगंधि जल छांटकर गोमयादि का लेपन कर जैसे उववाइमें कहा वैसे तैयारी करके
मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो ॥ ४१ ॥ फीर दुमरी वक्त भी जमाली क्षत्रिय कुमारके पिताने कौटुम्बिक 1ों को बोलाये और कहा कि अहो देवानुप्रिय ! जमाली कुमार के लिये बहुत द्रव्य लगे वैसा,
43 अनुवादक-बाल ब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्यालाप्रसादजी *