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शवाय
अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्रा अमोलक ऋपिजी
मातापिता को एक ऐसा व बोले त. तथाविध अ० मातापिता ज. जो तुः तुम ए ऐमा २० कहतेहो. णि निग्रंथ पा. प्रवचन स० सत्य अ० प्रधान के केवल जा. यावत् प० प्रवा अंगीकार करना ए. ऐसे ख० निश्चय अ० मातापिता णिः निग्रंथ पा. प्रवचन की० कृपण का• कायर का० कापुरुष को इ.इस लोक १० प्रतिधप-परलोक प० पराङ्गमु व वि० विषयतृष्णावाले को दु. दुस्तर पा• पापर मनुष्य को धी० धार पुरुष को णि निश्चित को व व्यवनित को को नहीं ए. यहां कि० किंचिदपि दु० दुष्कर
जमाली खत्तियकुमार अम्मापियरो एवं व्यासी तहाविणं तं अम्मयाओ जणं तुम्भे ममं एवं वदह एवं खलु जाया ! णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले तंचेव , जाव पव्वइहिसि ॥ एवं खल अम्मयाओ! णिग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबंधाणं, परलोग परम्मुहाणं. विसयतिसियाणं दुरणुचरे,
पामयजणस्स धीरस्स णिच्छियस्स ववसियस्स णो खलु एत्थ किंचिवि दुक्करं करणको ऐमा कहा कि अहो मातपिता ! निग्रंथ के प्रवचन सत्य, अनुत्तर, परिपूर्ण यावत् सब दुःखों के अंत भी करनेवाले हैं परंतु संयम मार्ग बहुत कठिन है इसलिये तुम काल कर गये पीछे मैं दीक्षा अंगीकार करूं ऐसा जो आप कहते हैं वह सत्य हैं परंतु अहो मातपिता ! निग्रंथ प्रवचन क्लीव, कायर, बीकण पुरुष को इसलाक के प्रतिबंधक को, परलोक से परांगमुखवाले को, विषय तृष्णावाले को व पामर मनुष्यों को दुरन- २
प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावात