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शब्दार्थ शीत उस
शीत उ०७० क्षुधा ऊष्ण पि. तृपा चो० चौर वा० सर्प दं० दंश म० मशक वा व्याधि पि.पित्त सिं० श्लेष्म । स. सन्निपात वि० विविध रो० रोग प० परीषह उ० उपसर्ग उ. उदय आये अॅ सहन करने को तं० ] इसलिये णो नहीं जा० पुत्र अ०. हम इ० इच्छत हैं तु० तेरा ख० क्षणमी वि० वियोग तं० इमलिये अ० A rm भोगव ना० तावत् जा. पुत्र जा. यावत् अ. हम जी0 जीते हैं त० पीछे अ० हम का० काल को प्राप्त होने जा० यावत् प प्रवया अंगीकार करना ॥३८॥ ततब से वह ज० जपाली क्षत्रिय कुमार अ. ___ नालंपिवासा नालंचोरा, नालंबाला, नालंदसा, नालंमसगा; नालं वाइयपित्तियागभिय है सण्णिवाइय विविहे रोगायंके परीसहोवसग्गे उदिण्णे अहियासेत्तए तं णोखलु जाया! है अम्हे इच्छामो तुझं खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया ! जाव अम्हे
जीवामो तओ पन्छ। अम्हेहिं कालगएहिं जाव पवइहिसि ॥ ३८ ॥ तएणं से भावार्थ
मीलना बहुत कठिन है. अहो पुत्र ! तू असंत सुकोमल है किसी प्रकार के दुःख सहन करने योग्य नहीं है, शीत, ऊष्ण, क्षुधा, तृषा, वैसे ही चारों के, सर्व प्रमुख के, दंश मशक के और वात पित्त,
श्लेष्म, सनिपाचदि रोगों के परिषह व उपसर्ग सहन करने को समर्थ नहीं है. इस से अओ पुत्र ! हम of क्षणमात्र भी तेरा वियोग नहीं इच्छते हैं और जहां लग हम जोते रहे वहां लग तू रहे. हमारा काल हुए
पीछे पुत्र पौत्रादिक की वृद्धि करके तू दीक्षा लेना ॥ ३८ ॥ उस वक्त जमाली क्षत्रिय कुमारने मातपिता
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) मूत्र88-800
*38** नववा शतक का तेत्तीमवा उद्देशा
1880