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शब्दार्थ
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अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
स० श्रमण नि निथ को आ० आधा की उ० उद्देशिक मि० मिश्रजात उ० अधिक बनाया हुवा पु०१ : पूतिकर्म की० मोललिया हुवा पा० उधारलाया अ०मांगकरलाया अ अनिष्ट दोष अ०सन्मुख लायाहुवा कं० अटविमें भिक्षु निमित्तका दुन्दुभिक्ष का गि०ग्लानी का व० वर्षा का पा० अतिथि भोजन से शय्यान्तर रा० रामपिंड मू० मूल भोजन के० कंद भोजन फ० फल भोगन वी० बीज भोजन ह. हरित भोजन भु० व खाने को पा० पीने को जा• पुत्र सु० सुख योग्य णो नहीं दु० दुःख योग्य न० नहीं अ० अलम् सी० म्मिएइवा, उद्दोसिएइवा,मिस्सजाएइवा, उज्झोयरिएइवा,पूइएइवा, कीएइएवा, पामिच्चेइवा,
अच्छेजेइवा आणिसिट्टेइवा,अभिहडेइवा,कंतारभत्तेइवा, दुभिक्खभत्तेइवा, गिलाणभत्ते___ इवा, वदलियाभत्तेइवा, पाहणभत्तेइवा, सेजायरापिंडेइवा, रायपिंडेइवा, मूलभायणइवा,
कंदभायणेइवा,फलभोयणेइवा,बीयभोयणेइवा,हरियभोयणेइवा भुत्तएवा,पायएवा,तुम्मंसि
चणं जाया ! सुहसमुचिए, णो चेवणं दुहसमुचिए नालंसीयं नालं उण्हं, नालंखुहा, मालिककी आज्ञा बिना उठाया हुवा, साधुकी सन्मुख लाया हुवा. अटविमें जानेवाले के लिये स्थापन किया हुवा, दुर्भिक्ष में भिक्षुकों को देने के लिये नीकाला हुवा, रोगी को पथ्य के लिये बनाया हुवा, वर्षा नहीं पडने के कारन से बनाया हुवा, पाहुणे के निमित्त बनाकर पाहुणे नहीं जीमे पहिले दिया हुया, शय्यांतर पिंड, राजपिंड, और मूल, कंद, पुष्प, बीज, व हरीकाय इनपांचोंको भोगवना ऐसे दोष रहित आहार पानी
- प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
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