SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1416
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ त० तैसे जा. यावत् प० प्रवा अंगीकार करूं ॥ ३७ ॥ त० तब तं० उस ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमार को अ० माता पिता ज. जब नो० नहीं सं० समर्थ हवे वि. विषयानुकूल से ब. बहुत आ० रवचन से प० प्रज्ञा से वि० बद्धि से स० संबोधन से आ० वचन से स बोधन से वि. विज्ञान से त.* तस वि०विषय १० प्रतिकूल से सं० संयम भ० भय उ० उद्गन प०प्रज्ञासे १० कहते ए ऐमा व० बोले ५० एस ख० खलु जा० पुत्र णि निग्रंथ पा० वचन स० मत्य अ० प्रधान के० केवल ज. जैसे आ० आवर से केसणं जाणइ तं चेव जाव पव्वइत्तए ॥ ३७ ॥ तएणं तं जमालिं खत्तिय कुमार अम्मयाओ जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमेहिं बहूहिं आघवणाहिय पण्णवणाहिय, विण्णवणाहिय सण्णवणाहिय, आघवेत्तएवा, सणिवेत्तएवा, विष्णवेत्तएवा, तहेव विसयपडिकूलाहिं संजमभयउव्वेयणकरीहिं, पण्णवणाहिं पण्णवे माणा एवं वयासी एवं खलु जाया ! णिग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले भावार्थ महावीर स्वामी की पास दीक्षा ग्रहण करूंगा ॥ ३७ ॥ नव माता पिता जमालीकुमार को विषयानुकूल त वचनों, विशेष वचनों, प्रेमयुक्त वचनों, प्रार्थनावाले वचनों और संबोधनवाले वचनों कहकर यावत् है संबोधन कर चलाने को समर्थ हुवे नहीं तव संयम में भय उत्पन्न करनेवाले विषय प्रतिकूल वचनों से कहने लगे कि अहो पुत्र ! निग्रंथ के प्रवचन सत्य, अनुत्तर, केवल, आवश्यक सूत्र में कहे वैसे यावत् । 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gi * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवस हायजी ज्वालाप्रसादजी * - - - -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy