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शब्दार्थ
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8- पंचमाङ्ग विकार पण्णात (भगवती सत्र
ए० ऐमा व० बोला त० तथाविध अ० माता पिता जं. जो तु० तुम व० कहते हो इ० यह ते तेरे जा पुत्र अ० दादा प० पडदादा जा. यावत् प० दीक्षा अंगीकार करना अ०माता पिता हि० हिरण्य मु०सुवर्ण जा. यावत् सा० द्रव्य अ० आग्नि आधिन चौ० चौर आधिन रा० राज आधिन म० मृत्य आधिन दा० । पत्रादि आधिन अ. अग्नि सामान्य जा. यावत् दा० पुत्रादि सामान्य अ. अध्रव अ. अनित्य अ० अशाश्वत पुः पहिला ५० पीछे अ० अवश्य वि० छोडना भ० होगा से० वह के० कौन जा. जानता है विणं अम्मयाओ ! जणं तुझे मम एवं बदह इमंच ते जाया ! अजय पजय जाव पव्यइहिसि, एवं खलु अम्मयाओ हिरण्णेय सुवण्णेय जाव सावएजे अग्गिसाहिए, चोरसाहिए, रायसाहिए, मच्चुसाहिए, दाइयसाहिए; आग्गिसामण्णे जाव दाइयसामण्णे, अधवे, आणितिए, असासए, पुल्विंवा पच्छावा अवस्सं विप्पजाहयव्यं भावस्सइ,
नवना शतकका तेत्तोमवा उद्देशा 9880
भाव
फीर दीक्षा लेना परंतु अहो माता पिता ! यह हिरण्य, सुवर्ण, यावत् प्रधान द्रव्य आग्नि आधिन, चौर के आधिन, राजा के आधिन, मृत्याधिन व पुत्राधिन है वैसे ही अग्नि सामान्य यावत् पुत्र सामान्य व अध अनित्य व अशाश्वत है. उसे पहिले व पीछे अवश्य छोडने का है परंतु यह नहीं जान सकते हैं कि कौन पहिले जावेगा और कौन पीछे जावेगा इस से अहो मातपिता ! आपकी आज्ञा से मैं श्रमण भगवंत
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