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________________ ५.टदार्थ औ० आयाहुवा ब० बहु हिरण्य सु० सुवर्ण के० कांस्य दू० वस्त्र वि० बहुत घ० घन क० कनक जा० यावत् है सा० प्रधान सा० द्रव्य अ० अलम् जा. यावत् आ० सात कु• कुलवंशी से ५० बहुत दा० देकर भो भोगवकर प०भागकर तं उसे अ• अनुभव ता तावत् जा०पुत्र वि०विपुल मा०मनुष्य के इऋद्धि स. सत्कार स० समदय तक पीछे अ. भोगवकर क. कल्याण व० वृद्धि क० कुलवंश जा. यावत |१३८४ प० दीक्षालेना ॥ ३६॥ त० तब से वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार अ० मात पिता को l सूत्र | दूसेय, विउल धणकणग जाव संतसारसावएजे अलाहि जाव आसत्तमाओ कुल ___ वंसाओ पकामं दाउ पकामभोत्तुं परिभाएत्तुं तं अणहोहि ताव जाया । विपुले माणु. स्सए इड्डि सक्कार समुदए तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे वड्डिय कुलवंस जाव पब्वइ. हिसि ॥ ३६ ॥ तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी तहा- . भावार्थ सातवा कुल तक पहुंचे इमलिये उत्कृष्ट दानादि में व्यय करो, भोगकर के गोत्रियों को बांट देवो इस तरह लक्ष्मीका लाभ लेकर विस्तीर्ण मनुष्य संबंधी कामभोग भोगवो, ऋद्धि सत्कार सन्मान के उदय को प्राप्त होवो. इस तरह कल्याण मंगल को प्राप्त होकर हमारा काल हुचे पीछे पुत्रपौत्रादिक की वृद्धि करके श्रमण भगवंत महावीर की पास दीक्षा धारन करो ॥ ३६ ॥ तव जमाली क्षत्रिय कुमार मातापिता को ऐमा बोले कि अहो मातपिता ! तुम कहते हो कि दादा, पडदादा व बाप के पडदादा का धन भोगव कर 42 अनुवादक बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी म * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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