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शब्दार्थ ४० मूकाता दु. दुःख बंधनवाला सिसिद्धिगमन में वि० विघ्नरूप से वह के० कौन जा० जानता है के
कौन पु० पहिला ग जानेका के० कौन प० पीछे तं० इसलिये इ. इच्छता हूं अ० माता पिता जा0 of यावत् प० प्रवा लेने को ॥ ३५ ॥ त० तब तं० उन ज० जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र को अ० मातापिता ए. ऐसा व० बोले इ० ये ते० तेरे जा• पुत्र अ० दादा ५० पडदादा पि. पिता के ५० पडदादा से से है कडुयफलविवागा चुडुलिव्य अमुच्चमाण दुक्खाणुबंधिणो सिद्धिगमणविग्घा,
से केसणं जाणइ अम्मयाओ ! के पुब्बिं गमणयाए के पच्छा, तं इच्छामिणं अम्मया.. ओ ! जाव पव्वइत्तए ॥ ३५ ॥ तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी-इमेय ते जाया ! अजयजयपिउपज्जयागएय बहुहिरण्णेय, सुवण्णेय, कंसेय । प्राप्त होसके वैसे, मूर्ख मनुष्यों को सेवने योग्य, साधु पुरुषों से सदैव निंदित, अनंत संसार की वृद्धि करने वाले, खराब फल के दाता, जलने घास के पूले समान, आत्मगुन को भस्म करनेवाले, और सिद्धि "यक्तिगमन में विघ्न कर्ता हैं. अब अहो मात पिता ! यह कौन जानते हैं कि पाहिले कौन जावेंगे। व पीछ कौन जावेंगे ! इससे मैं आप की आज्ञा मे प्रवर्ध्या अंगीकार करने को इच्छता हूं ॥ ३५ ॥ फीर जमाली क्षत्रिय कुमार को उन के मात पिता कहने लगे कि अहो पुत्र ! तेरे दांदा, पडदादा पिता के पडदादा से आया हुवा यह हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, बुख, विपुल धन, कनक यावत् प्रधान वित्त वगैरह।"
* नववा शतक का तेत्तीसरा उद्देशा १४४
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति
भावार्थ