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शब्दार्थ अ० हम का० काल को प्राप्त होते जा० यावत् प० प्रबजित होना ॥ ३४ ॥ त० तब से वह ज०
जमाली ख० क्षत्रिय कुमार अ० माता पिता को ए. ऐसा व० बोले त. तथाविध अ० मातापिता जं. जो तु• तुम म० मुझे ९० ऐना व कहते हो इ० ये ते० तेरे जा० पुत्र वि० विपुल कु० कुल जा. यावत् ५० दीक्षा लेना अ० मातापिता मा० मनुष्य के का० कामभोग अ अशुचि अ.अशाश्वत वं. वमनद्वारवाले पि. पित्ताश्रय खे० श्लेष्माश्रय सु० शुक्राश्रव सो० शोणिताश्रय उ० उच्चार पा० प्रश्रवण खे० श्लेष्म
वोच्छिण्णकोउहल्ले अम्हेहिं कालगएहिं जाव पव्वइहिसि ॥ ३४ ॥.तएणं से जमा. ली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी तहाविणं तं अम्मयाओ ! जण्णं तुब्भेमम एवं वदह इमाओय ते जाया! विउल कुल जाव पव्वइहिसि; एवं खलु अम्मया
ओ ! माणुस्सया कामभोगा असुई असासया वंतासवा, पित्तासग, खेलासवा, भावार्थ कूल, हृदय को इच्छित, तेरे गुणकी वल्लभ और उत्तम भावानुरक्तसे सर्वांगसुंदरवाली ऐसी आउ भार्याओं हैं.
इसलिये उन की साथ जहां ठग विपुल काम भोग होवे वहांलग भोगवो. पीछे भुक्तभोगी बनकर और 1
शब्दादिकामभोगों में क्षीणता हुवे पीछे हम काल कर जावे यावत् पुत्र पौत्रादिक की वृद्धि करके Tतम दीक्षा लेना ॥ ३४ ॥ जमाली क्षत्रियकमारने मातापिता को ऐसा कहा कि अहो माता पिता! जो
तुम मुझे कहते हो कि बडे कुलवाली स्त्रियों यावत् दीक्षा लेना यह संस है अन्यथा नहीं है। परंतु अहो माता
Nagaपंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
4082233नयां शतकका तेत्तीसवा उद्देशा8488