________________
शब्दार्थ
4
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापजी +
हसना वि० देखना ग० गति वि०विलास चि० चेष्टा वि० बुद्धिमान् अऋद्धिवंत कु०कुल सी०शीलवन्त वि० । विशुद्ध कुल वं• वंश सं० संतान तं• तंतु वि० वृद्धि करने में प० गर्भ व० वयभाविनी म०मनको अनुकूल हि० हृदय इच्छने वाली अ० आठ गु० गुण से व० वल्लभ उ ऊत्तम नि० नित्य भा० भावानुरक्त
१३८० स० माग मुं० सुंदरी भा०. स्त्रियों को भुं० भोगव जा. यावत् ए० इन की स० साथ वि. विपुल मा० मनुष्य का का० काम भोगा त० पीछे भु० भुक्त भोगी वि. विषय वो० क्षीण होते को. कुतूहल
विलास चिट्ठियविसारयाओ, अविकलकुल सील सालियाओ विसुद्धकुलवंससंताण तंतुविवद्धणप्पगब्भवय भाविणीओ मणाणुकुलहियइच्छियाओ अट्ठ तुज्झ गुण वल्ल हाओ उत्तमाओ णिच्चं भावाणुरत्त सव्वंगसुंदरीओ भारियाओ तं भुंजाहि, ताव जाव
जाया ! एयाहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे तओ पच्छा भुत्तभोगी विसय इन को लाये हैं, ६४ कला में कुशल हैं. विचक्षण हैं, सकल कला कौशल्य में किसी से छलित होवे वैसी नहीं है, सतीत्व के गुण युक्त हैं, आज दिन तक किसीने इन का मन दुखाया नहीं हैं, सब ऋतु में सब प्रकार से भोगने योग्य हैं, मार्दवादि गुण युक्त व विवेक संपन्न हैं सर्व प्रकार के उपचारोंमें कुशल, अत्यंत विशारद, सुकोमल बोलने वाली, मित वचन बोलनेवाली, हास्यविलास व नेत्रचेष्टा में कुशल वगैरह सर्वगुणोपेत हैं. ऋद्धिसे परिपूर्ण, कुल से सुशोभित, विशुद्ध संतान की वृद्धि करने वाली, मन को अनु- है।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ