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शब्दार्थ यावत् प० अंगीकार करने को ॥ ३३ ॥ त० तब जा जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र को अ० मात पिता ए०३.
ऐसा व० बोले इ० ये ते तेरे जा०पुत्र वि बडेकुलकी बा०वालिका स० सरिखी त्वचावाली स०सरिखीवय-30 वाली स० सरिखा ला० लावण्य रू० रूप जो यौवन गु० गुण युक्त स० सरिखा कु० कुल में से आ300 लाइहुइ क० कला कु कुशल स० सर्व काल ला. लालित मु० सुख वाली म० मार्दव गुण जु० युक्त नि० १ .: निपुन वि० विनय उ० उपचार पं० पंडित वि• विचक्षण मं० मंजुल मि० मीत म० मधुर भ० बोलना ह.
अम्मयाओ! के पुट्विं तं चेव जाव पव्वइत्तए॥३३॥ तएणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा पियरो एवं वयासी इमाओय ते जाया ! विउल कुल बालियाओ सरिसयाओ सरित्तयाओस. रिव्वयाओ सरिस लावण्णरूव जोव्वणगुणोववेयाओ सरिसएहितो कुलेहितो आणिएलियाओ कलाकुसल सव्वकाल लालिय सुहोचियाओ मद्दवगुणजुत्त निउणविणओ
वयार पंडिय वियक्खणाओ, मंजुल मियमहुर भाणयावेहसियविप्पेक्खियगइ । छोडना पडेगा. अब अहो मातपिता : यह किसको मालूम है कि पहिले कौन छोडेगा और पीछे कौन है छोडेगा इस लिये मैं श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पांस दीक्षा अंगीकार करूंगा ॥ ३३ ॥
फीर भी जमाली क्षत्रिय कुमार को मातपिता ऐसे कहने लगे कि अहो पुत्र ! बडे कुल में उत्पन्न हुई ऐसी 17 तेरी स्त्रियों हैं. वे तेरे सरीखी समानवय, त्वचा, लावण्य, व यौवन गुनवाली हैं, अपने बराबर कुल में से |
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 93800
Rago नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा 488
भावार्थ