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________________ * १.३७७ शब्दार्थ नि० अपना स० शरीर क० रूप सो० सौभाग्य जो० यौवनगुण अ० हम का काल को प्राप्त होते प० । वृद्ध होते व वय व० वृद्धि कर कु० कुलवंश तं० तंतु कार्य नि० आकांक्षा रहित स० श्रमण भः भगव-14 पन्त म० महावीर की अं० पास मुं० मुंड होकर अ० अगार से अ० अनगार को १० अंगीकार करना १॥ ३२ ॥ त. तब से वह ज. जमाली ख. क्षत्रिय पत्र अ० माता पिता को एक ऐसा वा बोल त. तथाविध अ० मातपिता जं० जो तु• तुम म • मुझे एक ऐसा व• कहते हो ते तेरा जा• पुत्र स० शरीर जा. यावत् १० अंगीकार करना एक ऐसे अ० मातापिता मा० मनुष्य का म० शरीर दु० दुःख का घर निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि ॥ ३२ ॥ तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी है तहाविणं तं अम्मयाओ ! जण्णं तुब्भे मम एवं वदह इमं चणं ते जाया ! सरीरगं तं चेव जाव पव्वइहिसि, एवं खलु अम्मयाओ ! माणुस्सगं सरीरं दुक्खाययणं विविह के सौभाग्य यौवन गुणों रहे हुवे हैं वहां लग इस का अनुभव कर पीछे अपने शरीर के सौभाग्य यौवन गुणों को भोगवकर और हम काल कर जावे तब तू पुत्र पौत्रादिक की वृद्धि करके आकांक्षा रहित श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास दीक्षा अंगीकार करना ॥ ३२॥ फोर जमाली क्षत्रिय कुमार माता पिता को ऐसा बोले कि अहो मातपिता ! तुम जो कहते हो कि यह शरीर उत्कर्ष रूप यावत् । पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 2.8 wwwmornww नववा शतकका तत्तीमवा उद्देशान भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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