SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1406
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ । 42 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी रू० रूप ल० लक्षण बं०: व्यंजन गु० गुण युक्त उ० उत्तम ब० बल वी० वीर्य स० सत्र जु० युक्त वि० (विज्ञान वि० विचक्षण सो० सौभाग्य गुरु गुण स० उत्पन्न अ० कुलीन म० महान् क्षमावाला वि० विविध ( वा० व्याधि रो० रोग र० रहित नि० वायु विकार रहित उ० उदात्त ल० मनोहर पं० पंचेन्द्रिय प० प्रसय १० प्रथम जो० यौवनपना अ० अनेक उ० उत्तम गुण से जु० युक्त तं उस को अ० भोगव जा यावत् जा० पुत्र नि० अपना म० शरीर रू० रूप मो० सौभाग्य जो० यौवनगुण त० पीछे अ० भोगवकर लक्खण बंजण गुणावत्रेयं उत्तमबल वीरियसत्त जुत्तं विष्णाण वियक्खणस सोभग्गगुणसमुस्सिय अभिजाय महक्खमं विविह बाहिरोगरहिये निरुवहय उदत्तलट्ठ पंचिंदिय पडुपढम जोव्वणत्थ अणगउत्तमगुणेहिं जुत्तं तं अणुहोहि ताव जाव जाया ! नियग सरीर रूव सोहग्ग जोव्वण गुणे तओ पच्छा अणुभूय नियग सरीर रूव सोहग्ग जोव्वणगुणे अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवओ, वड्डिय कुलवंसतं तु कज्जइच्छता हूं ॥ ३१ ॥ फीर मातापिता कहने लगे कि अहो पुत्र ! तेरा शरीर प्रकर्षरूप व श्री वत्सादि लक्षणवाला है, मसादि व्यंजन युक्त है, उत्तम बल वीर्य सत्र युक्त है, ७२ कला में विचक्षण है, सौभाग्य गुणों का धारक है, क्षमावंत, कुलिन पुरुषों में समर्थ पूजनीय, अनेक प्रकार के आधि व्याधि { से रहित है, वायु विकार रहित है, उत्तम वर्णादि गुणों से मनोहर पंचेन्द्रिय के विषय में विचक्षण, यौव{नावस्था का धारक है और भी अन्य अनेक गुणों से युक्त है इस से अहो पुत्र ! जहांलग अपने शरीर * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुवदेव नहायजी ज्यालामवादी * १३१६
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy