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शब्दार्थ अनित्य स. सडन प० पहन वि० विध्वंसन धर्म पु० पहिले प० पीछे अ० अवश्य वि० छोडना भ० होगा ।
से वह के० कौन जा० जानता है अ० मातपिता के. कौन पु० पहिला ग० जाना के• कौन ५० पीछ? ग० जाना तं० इमलिये इ. इच्छता हूं अ० मातपिता तु० तुमारी अ० आज्ञा मिलते स. श्रमण भ०१
भगवन्त म० महावीर की जा० यावत् प० प्रवर्जा लेने को ॥ ३१ ॥ त० तब तं० उन ज. जमाली ख. विक्षत्रिय कुमार को अ० मातापिता ए. ऐसा व० बोले इ० यह तं० तेरा जा० पुत्र स. शरीर ५० उत्तम
धम्मे पुबिवा पच्छावा अवस्सं विप्पजहियव्वे भविस्सइ,से केसणं जाणइ अम्मताओ ! के पुट्विं गमणयाए के पच्छा गमणयाए तं इच्छामिणं अम्मताओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए ॥ ३१ ॥ तएणं तं जमालिं
खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी इमंचणं तं जाया ! सरीरगं पविसिटरूव भावार्थ
x वेदना, व्यसन व राजादिक के उपद्रव से पराभव पाया हुवा है. अध्रुव, अनित्य, अशाश्वत, संध्या का रंग
समान, जल का परपोटा समान, कुशाग्रपे जल विन्दु समान, स्वप्न दर्शन समान, चंचल विद्युत समान, अनित्य व सडन पडन व विध्वंसन स्वभाववाला है इसलिये पहिले अथवा पीछे इस को जरूर ही छोडना* होगा. अहो मातपिता ! यह कौन जान सकता है कि पहिले कौन जायगा और पीछे कौन जायगा. इसलिये आप की आज्ञा लेकर मैं श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास दीक्षा अंगीकार करने को है "
विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
380 नववा शतकका तेत्तीसचा उद्देशा ६