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बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी !
हो तु• तुम सि• हो जा० पुत्र अ० मैं ए० एक पु० पुत्र इ० इष्ट कं. कांत जा. यावत् १० अंगीकार करना ए. एसे अ० मातापिता मा० मनुष्य भव में अ. अनेक जा० जन्म ज. जरा म मरण रो० रोग सा० शारीरिक मा० मानसिक १० काम दु० दुःख वे. वेदना ३० व्यसन उ० उपद्रव अ० अभिभूत अ० अनित्य अ० अशाश्वत सं० संध्या का रा० रंग स० सरिखे ज० जल बु० बुबुद् समान कु० कुशाग्र ज० जलविन्दु स० समान सु. स्वप्न दं० दर्शन जैसे वि० विद्युत चं० चंचल अ०
अम्म एगे पुत्ते इंद्र कंते तं चेव जाव पव्वदाहीस, एवं खलु अम्मताओ !
माणुस्सए भवे. अणेगजाइजरामरणरोगसाररिमाणसपकामदुक्खवेयणवसणसओवद्द. वाभिभूए अधुवे आणितिए असासए संझभरागसरिसे जलवुवुदसमाणे कुसग्ग ।
जलबिंदुसाण्णभे सुविणगदसणोवमे विज्जुया चंचले आणिच्चे सडणपडणविधंसण कुमार मातपिता को ऐमा बोले कि अहो मातपिता ! जो तुम कहते हो कि तुम को इष्टकारी कंतकारी यावत् गुलर पुष्प की समान दुर्लभ एक पुत्र का नाम श्रवण करने का है तो फीर देखने का कहना ही क्या और भी तुम काल कर गये पीछे पुत्र पौत्रादिक की वृद्धि करके आकांक्षा रहित श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास दीक्षा अंगीकार करना; ऐसा जो नुम कहते हो वह सत्य है. अन्यथा नहीं है. परंतु अहो मातपिता ! यह मनुष्य भत्र अनेक जन्म जरा मरण रूप शरीर संबंधी मन संबंधी दुःखों अथवा
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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