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शब्दार्थ
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पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र
तं० इसलिये अ. रहे ता० उतना जा • पुत्र जा यावत् अ० हम जी जावे त उस प० पीछे अ० हम का० १ । काल को प्राप्त होते प• वृद्ध होकर व० वृद्धि कर कु० कुलवंश का तं० तंतुकार्य नि० आकांक्षा रहित स० श्रपण भ० भगवंत म. महावीर की अं० पास मुं० मुंड होकर अ० अगार से अ० अन्गार पना प० । अंगीकार करना ॥ ३० ॥ त० तब से वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार अ० मातापिता को ए००० ऐसा व० बोला त• तथाविध सं० बह अ० मातापिता जं. जो तु० तुम म० मुझे ए० ऐना च० बोलते
इच्छामो तुब्भं खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया ! जाव ताव अम्हे जीवामो, ती पच्छा अम्हेहिं कालगएहिं समाणेहिं परिणयवओ वड्डियकुलवंसतंतुकजंमि निरवयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइहिसि ॥ ३.० ॥ तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो
एवं वयासी तहाविणं तं अम्मताओ ! जण्णं तुब्भे ममं एवं वदह तुम्मंसिणं जाया ! सुनने का है तो फीर उन को देखने का कहना ही क्या ? इस से अहो पुत्र ! हम क्षण मात्र भी तेरा ge वियोग नहीं इच्छते हैं. इस से अहो पुत्र ! जब लग हम जीवे वहां लग तुम गृहवास में रहो. और जब। हम काल कर जाये तब अनेक पुत्र पौत्रादिक की वृद्धि करके आकांक्षा रहित बनकर श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास मुंड होकर गृहवास से दीक्षा अंगीकार करो ॥ ३० ॥ फीर जमाली क्षत्रिय
882 नवधा शतक का तेत्तीवा उद्देशा
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