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शब्दार्थ
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1848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
भूमितलपे ध० घसती होवे स० सर्वाग से सं० सोतीपडी ॥ २९ ॥ त० तब सा० वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय कुमार की मा० माता स० व्याकुलता से तु० त्वरित कं० कांचन भिं० पात्र के मु० मुख से वि• नीकाली हुई सी० शीतल वि. विमल ज० जलधारा मे प० सिंचाइहुइ नि० स्वस्थ किये गा० गात्र
१३७१ उ० ग्रहण करने योग्य ता०ताल के पत्र का वीविजने से ज० उत्पन्न हवा वा वात से स० उद सहित अं• अंतःपुर के प०परिवार से आ आश्वासन करती रो०रोती कं० आक्रंद करती सो० शोककरती _ विमुक्कसंधिबंधणा कोटिमतलंसिधसत्ति सव्वंगेहिं संनिवडिया ॥ २९ ॥ तएणं सा । __ जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया ससंभमोयत्तियाए तुरियं कंचभिंगारमुहविणिग्गयसीयलविमलजलधारपरिसिंचमाणनिव्वावियगायलट्ठी उक्खेवयतालियंट वीयण
गजणियवाएणं सप्फुसिएणं अंतेउरपरियणेणं आसासियासमाणी रोयमाणी फीका होता है वैसे फीकी होगई, सघन बंधन शिथिल होगये, और मणि जडित भूमि पर गीरपडी ॥२९॥ उस समय में व्याकूलता को दूर करनेवाली दासियोंने सुवर्ण पात्र के मुख से नीकला हुवा शीतल जल की धार से उन के गात्रों का सिंचन किया, मुष्टि में ग्रहण योग्य वंश पत्रादिमय ताल नामक वृक्ष के पत्र का पंखा अथवा वैसा आकारवाला चर्म का पंखा से वायु किया, और सब परिवार ने आश्वासन युक्त वचनों में सुनाये. इस तरह शुद्धि में आई. फीर टूटेहुवे हार के मोतियों की माला की तरह अश्रु वर्षाती हुई, व रुदन है।
8नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 980*
भावा