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________________ शब्दार्थ १३७० 28 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी g झरता वि०शिथिल ग गात्र सो० शोक से प०कंपित अं०प्रत्येक अंगवाली नि०निस्तेज दीदीन वि०विमनस : वदनवाली क-करतलमें म० मसलीहुई क• कमलमाला त० तत्क्षण ओ० ग्लान दु० दुर्बल स० शरीर ला. लावण्य सु० शून्य नि० कान्ति रहित ग० गइहुइ सि• शोभावाली प० शिथिल भू० भूषण प० पड़ेहुवे खु० गयेहुवे सं० भग्न ध० धवल व० वलय ५० उतरा हुवा उ० उत्तरीय वस्त्र मु० मूर्छा के अ० वशसे न० नष्ट चे० चित्त में गु० गुरुता सु सुकुमार वि०विकीर्ण के केश ह० हस्तवाली प० फरसी से निक छदायी चं० चंपकलता जैसी नि० निवर्ता म० वडा इं० इंद्र स्थंभ वि० मुक्त सं० सांधे बं० बंधन को ___ सोगभरपवेवियंगमंगी नित्तया दीणविमणवयणा करयलमलियव्वकमलमाला, तक्खण ओलुग्ग दुब्बलसरीरलायण्णसुण्णनिच्छायगइसिरीया, पसिढिल भसण पडियखुणियसंचुणियधवलवलया पब्भट्ठउत्तरिज्जा, मुच्छावसणडचेतगरुई, सुकुमालविकिण्णकेसहत्था . परसुनियतव्यचंपगलया . निव्वत्तमहव्वइंदलट्ठी मसलीहुई कमल पुष्पों की माला समान शरीर कुमलागया, लावण्य रहित बनगई, अंगके आभूषणों ढीले पडकर जमीन पर पडने लगे, कितनेक बलयादिक नाजुक आभूषणों का चूर्ण होगया, मस्तक उमर का ओढना दूर होगया, शोकाकूल से शुद्धि रहित होगई, मूछित बनकर परशु से छेदाइहुइ चंपकलताकी तरह निश्चेष्ट बनी, शिर के वाल खलकर विखर गये, महोत्सव की सपाप्ति हुए पीछे जैनें इन्द्र महोत्सव का स्थंभ • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावाथे
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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