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शब्दार्थ धर्म नि० सूना जा. यावत् अ० रुचा त० तब अ. मैं अ० माता पिता सं: संसार भ० भय से उ उद्विग्न ।
भी० डरा हुवा ज० जन्म ज. जरा म० मरण से तं० उन को इ० इच्छता हूं अ० माता पिता तु. तुमारी अ. आज्ञा मिलते स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं० पास से मुं० मुंड भ० होकर अ० अगार से अ० अनगारपना १० अंगीकार करने को ॥ २९ ॥ त तब सा. वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र की मा० माता तं० उस. अ. अनिष्ट अ० अकांत अ० अप्रिय अ० अमनोज्ञ अ० अमणाम अ० नहीं सुनी पु. पूर्व गि० वचन सो० सुनकर णि० अवधारकर से० स्वेद आ० आया रो० रोमकूपमें से प०
जरा मरणेणं, तं इच्छामिणं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्मणुण्णाए समाणे समणरस भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भावत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ॥ २९ ॥ तएणं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया तं आणिटुं अकंतं आप्पियं अमणुण्णं
अमणामं अस्सुयपुत्वं गिरं सोचा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलंतविगलिनगत्ता भावार्थ , आपकी आज्ञा लेकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास मुंड होकर दीक्षा अंगीकार करने को इच्छ
ता हूं ॥ २९ ॥ उस समय जमाली क्षत्रिय कुमार की माता ऐसे अनिष्टकारी, अकांतकारी, अप्रियकारी,* अमनोज्ञ, अमनाम व पहिले नहीं सुने हुवे ऐसे वचन सूनकर अवधारकर स्वेद युक्त रोमकूम से शिथिल गात्र बाली हुई. शोक के भार से गात्रों कषित हुए. शक्कि रहित निर्बल हुइ, दयामय शरीर हुआ, हस्त तल में
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <gs
नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा