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शब्दार्थ | * ऐसा व० बोले घ० धन्य तु० तू जा० पुत्र क० कृतार्थ तु० तू जा० पुत्र क० कृत पुन्य तु० तू जा० पुत्र क० कृतं लक्षण तु० तू जा० पुत्र जे० जिस से तु० तू स० श्रमण भ भगवन्त म० महावीर की अं० पास से घ० धर्म निः सूना से० वह ध धर्म इ० इच्छा प० विशेष इच्छा अ० रूचा ॥ २८ ॥ त० तब से वह ज० जमाली ख० क्षत्रिय पुत्र अ० माता पिता को दो दोवक्त ए० ऐसा व बोला- ए० ऐसा ख० निश्चय म० मैंने अ० माता पिता स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं० पास से ध० सिणं तुम्मं जाया ! कयपुण्णेसिणं तुम्मं जाया ! कयलक्खणे सिणं तुम्मं जाया ! जेणं तुम्मे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं निसंते सेविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ॥ २८ ॥ एणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मादियरो दोचंपि एवं वयासी एवं खलु मए अम्मताओ ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं निसंते जाव अभिरुइए, तएणं अहं अम्मताओ संसार भयओविग्गे भीए जम्म
सूत्र
भावार्थ
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
तू कृत पुण्यवाला है, मैंने देह के लक्षण सार्थक किये हैं. क्योंकि तैने श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के वचन सुने हैं यावत् उन की इच्छा व अभिरुचि की है ॥ २८ ॥ फीर जमाली ने पुनः ऐसा कहा कि अहो मातापिता ! मैंने श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के वचन सुने हैं उनकी इच्छा इस से मैं संतार भय से उद्विग्न बना हुआ हूं और जन्म जरा मरण से डरता हूं. इस से
व
अभिरुची हुई है. अहो मात पिता
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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