________________
शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
4:- पंचमांगविवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
तहाँ उ०
आकर तु० अश्व णि० ग्रहणकर २० रथ को ठा० स्थापकर र० रथ से प० उतरकर | जे० जहां अ० आभ्यंतर उ० उपस्थान शाला जे० जहां अ० मातापिता ते० तहां उ० आकर अ० १०७ मातापिता को ज० जय वि० विजय से व० बनाकर ए० ऐसा व बोले ए० ऐसे अ० मातापिता म० मैंने स० श्रमण भ० भगवन्न म० महावीर की अं० पास से ध० धर्म नि० सूना से० वह ध० धर्म इ ( इच्छित १० प्रतिच्छित अ रूवा ॥ २७ ॥ त० तत्र तं उन जः जमाली ख० क्षत्रिय कुमार को ए० रहूं ठावेइ ठावेइत्ता, रहाओ पच्चोरुहइ २ ता जेणेव अभितरिया उबट्ठाण साला जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ २ चा अम्मापियरो जएणं विजएणं वद्धावेइ वेता एवं वयासी एवं खलु अम्मताओ ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं निसंते, सेविय धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ॥ २७ ॥ तणं तं जमालि खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी धण्णेसिणं तुम्मं जाया ! कयत्थेनीकले. और उस की बीच में होकर स्वगृह में उपस्थानशाला में आकर अश्व को रोके और स्वयं रथ से नीचे उतरे. वहां से आभ्यंतर उपस्थानशाला में माता पिता की जय विजय शब्द से वधाये और ऐसा बोले कि अहो मातपिता मैंने श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी की पास से
धर्म श्रवण किया है।
और उस धर्म की इच्छा यात्रत् रुचि की है ॥ २७ ॥ तत्र माता पिता बोले कि अहो पुत्र तुझे धन्य
4 नववा शतक का तेत्तीसका उद्देशा
१३६७