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शब्दार्थ के पा. प्रवचम अ० यथा तथ्य भं० भगवन् अ. संदेह रहित जा. यावत् सेवा ज. जैसे तु. तुम
१०व० कहतेहो जं. जो ण. विशेष दे० देवानुपिय अ. मातापिता को आ० पूछताहूं त० पीछे दे० देवा
नुपिय की अंक पाप्त मुं० मुंडहोकर १० अगार से अ० अनगार को प० अंगीकार करताहू अ यथासू-17 खम् दे० देवानप्रिय मा० मत प० प्रतिबंध ॥ २७ ॥ त० तब से वह ज० जमाली ख० क्षत्रियपत्र स016 श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर से ए. ऐमा वु० बोलाते ह० हृष्ट तु. तुष्ट स० श्रमण भ० भगवन्त म.
णिग्गंथं पावयणं, तहमेयं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, अवितहमेयं भंते ! असंदिरमेयं भंते ! जाव से जहयं तुब्भे वदह ज णवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि तएणं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वयामि, ॥
अहासुहं देवाणुप्पिया मापडिबंधं ॥ २७ ॥ तएणं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं है . भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठ तुढे जाव समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव करता हूं. निग्रंथ प्रवचन के लिये मैं उपस्थिव हुआ हूं यह वही निग्रंथ के प्रवचन हैं. निग्रंथ के प्रवचन तथ्य हैं, यथातथ्य है, शंका रहित हैं यावत् जैसे आप कहते हो वैसे ही निग्रंय के प्रवचन हैं. इस से मैं मात
पिना की आज्ञा लेकर आप की पास मुंड होकर गृहवास स अनगारपना अंगीकार करूंगा. अहो देवाॐ नुप्रिय ! जैसे तुम को सुख होवे वैसा करो. विलम्ब मत करो ॥ २७ ॥ फीर भगवंत श्री महावीर
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4.80p
नवपा शतक का तेत्तीसवा उद्देशाo gin
भावार्थ