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402 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ २६ ॥ त तब जा जमाली खः क्षत्रिय कुमार स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं० पास से ध० धर्म सो० मूनकर णि० अवधारकर ह० हृष्ट तु. तुष्ट जा. यावत् हि० खुशहुवा उ० स्थान से उ० बठकर स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को ति० तीन वक्त जा. यावत् ण. नमस्कार कर ए० ऐसा व. बोले स० सर्दताहं भं. भगवन् णि. निर्गथ का पा० प्रचवन को प० प्रतित करताहूं णि निग्रंथ के पा. प्रवचन को रो० प्रसंद करताहूं णि णिग्रंथ के पा० प्रवचन को अ० उद्यमवन्त होता हूं नि०॥ निग्रंथ के पा० प्रवचन को ए० ऐसे ही नि० निग्रंथ के पा० प्रवचन त० तथैव भं. भगवन् णि० निग्रंथ
जाव धम्मकहा जाव परिसा पडिगया ॥ २६ ॥ तएणं जमाली खत्तिय कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठतुढे जाव हियए। उठाए उद्वेइ उद्धेइत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी सदहामिणं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, पतियामिणं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, रोएमिणं
भंते ! णिग्गंथं पावयणं, अब्भुट्टेमिणं भंते ! णिग्गंथं पावयणं, एवमयं भंते ! परिषदा पीछी गई ॥ २६ ॥ श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास धर्म श्रवण कर जमाली क्षत्रिय कुमार हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुए और अपने स्थान से उठकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को तीन आदान प्रदक्षिणा यावत् नमस्कार करके ऐसा बोले कि अहो भगवन ! निग्रंथ प्रवचन की श्रद्धा, प्रतीति व रुचि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *