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शब्दार्थ १० सू शुचीभून अं० अंजलि म. जोडकर ह. हस्त जे. जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर ते.
तहां उ० पाकर म० श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर को नि० तीन वक्त जा. यावत् ति० तीन योग से प० पर्युपासना करे ॥ २५ ॥ त० तब स. श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर ज. जमाली ख० क्षत्रिय कुमारको त उस म. बडी इ. ऋषि जा. यावत् ध धर्म कथा जा० यावत् प० परिषदा ५० पीछीगई.
तुरिए णिगिण्हेइ णिगिण्हेइत्ता रहं ठवेइ २त्ता,रहाओ पच्चोरुहइ२त्ता, पुप्फतंबूलाउहमाइय वाणहाउय विसज्जेइ २ त्ता एग साडियं उत्तरासंगं करेइ करेइत्ता, आयंते चोख परम सूइन्भूए अंजलि मउलिय हत्थे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ॥ २५ ॥ तएणं
समणे भगवं महावीरे जमालिस खत्तिय कुमारस्स तीसेय महइ महालियाए इसि भावार्थ
नगर की बाहिर पहुशाल चैस में आकर अश्व को खडा किया. वहां रथ से नीचे उतर कर पुष्प ताम्बूल पगरखी आयुध वगैरह अलग किये और वस्त्र का उत्तरासंग करके आचमन कर परम शूचीभूत बनकर दोनों हस्त जोडकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास आये. वहां श्रमण भगवंत महावीर स्वा तीन योग से विधि पूर्वक वंदना नमस्कार सेवा करने लगे ॥ २५ ॥ उम समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने जमाली क्षत्रियकुमार को उस बडी परिषदा में धर्म कथा सुनाइ यावत् धर्म कथा सुनकर
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र
नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा.
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