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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
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उपस्थान शाला जे० जहाँ पा. चारचंट वाला आ० अश्वस्थ ते०-तहां ७० आकर चा चारघंट वाला आ.. अश्वरथप दु० चढकर स. कोरंटकके म. पुष्प की माला युक्त छ.छत्र ध० धराता हुवा म० बडे भ० भट च. सुभट ५० चाकर के वि. वृंद से प० घेराये हुवे ख. क्षत्रिय कुंडग्राम न० नगर की म० मध्य से
नीकलकर जे. जहां मा. माहणकुंड ग्राम नगर जे. जहाँ ५० बहुशाल चे. चैत्य ते. तहां कर तु० अश्वको णि ग्रहणकर र० रथ से प. उतरकर पु० पुष्प तं० तांबूल आ• आयुधादि उपानहादि वि० त्यजकर ए. एक सा. दूपटा उ० उत्तरासंग क० करके आ० अत्यंत चो• शुद्ध प० परम रिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, चाउग्घंट आसरहं दुरूहइ दुरूहइत्ता, सकोरंटमलदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं महया भडचडगर । पहकरविंद पंरिक्खित्ते खत्तियकुंडग्गामं णयरं मझं मझेणं णिग्गच्छइ २ त्ता जेणेव
माहण कुंडग्गामे गयरे जेणेव बहुसालए चेइए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, जैसे परिषदा का वर्णन उत्रवाइ मूत्र में किया वैसे ही यहां कहना यावत् चंदनसे गावों का विलेपन इकिया, सर्वालंकार से विभूषित बने और मज्जन गृह से नीकले और उपस्थान शाला में चार घंटवाला अश्वरथ की पास आकर उस में बैठे, और कोरंटक वृक्ष के पुष्पों की माला युक्त छत्र शिरपर धारनकर बहुत मुभट, नोकर, चाकर वगैरह परिवार से परवरे हुए क्षत्रियकुंह नगर की बीच में होकर ब्राह्मण कुंड है।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
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