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शब्दार्थ
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सूत्र
भावार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
सि. कदाचित् बाबालपंडित वीर्यपने अ० अतिक्रमे ॥ ३॥ ज. जैसे उ-उदयमें दो दोआलापक त. तैले उ० उपशांत में दो दोआलापक भा० का विश 3 अंगीकार करे पं० पंडित शर्यपने a: अतिक्रमे बाल बालपंडित वीर्यपने अ० अनिकषे ॥ ४ ॥ से वह भ. भगवन् किं. क्या आ० आ.
वीरियत्ताए अवकमेजा, ॥ ३ ॥ जहा उदिनेणं दो आलावगा, तहा उबसतेणवि है दो आलावगा भाणियन्वा, णवरं उबहाएज्जा, पंडियबीरियत्ताए अवकामेजा, बाल है पंडियधीरियताए अक्कमेजा ॥४॥से भंते ! किं आयाए अवकामइ, अणायाए वीर्य से अपक्रमे अर्थात् बाल पंडित वीर्य से देशविरति (श्रावक) होता है. पाडान्तर ऐसा भी है। कि मात्र बालवीर्यपने मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का उदयो अपक्रने परंतु अन्य दो कीर्य सहित अपक्रने नहीं ॥ ३॥ जैसे उदय का दो आलाप का ही उपशान्तका दो आलापक जानना. इन में 7. विशेष इतना कि पहिला आलापक में क्रिया करते सर्वथा मोहनीय उपशान्त रहे इसलिये उपशान्त मोह अवस्था में पंडित वीर्य का भाव है और अन्य दो का अभाव है. दूसरा आलापक मे संयतपना से मोहनीय कर्म उपशमा और पाल पंडित वीर्य से पीछा पडकर देश विरति हुवा उनको मोहनीय कर्म के उपशम का सद्भाव है परंतु मिथ्यात्वी नहीं हुवा है क्यों कि मोह के उदय से ही मिथ्यात्वी होवे परंतु यहां पर मोह मिथ्यात्व के उपशम का अधिकार है ॥ ४ ॥ अब सामान्य से अपक्रम का अधिकार चलता है।
20880208 पहिला शतक का चौथा उद्दशा
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