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________________ श्री अमोलक ऋषिजी शब्दार्थ +त्मा से अ० अतिक्रमे ब० परात्मा से अतिक्रमे गो० गौतम आ० आत्मासे अ० अतिक्रमे णो० नहीं अ० परात्मासे अ० अविक्रमे मो० मोहनीय क. कर्म वे० वेदता से वह क० कैसे ए• यह भ० भगवन) = ए. ऐसे गो• गौतम पु० पहिले से वह ए. यह एक ऐसा रो० रूचे इ० पीछे से वह एयह ए. ऐसा को नहीं रो• चे ए. ऐसे ख. निश्चय ए. यह ॥५॥ से वह णू निश्चय भ• भगवन ने नार अबक्कमइ ? गोयमा ! आयाए अवक्कमइ, णो अणायाए अवक्कमइ । मोहणिजं कम्म वेदेमाणे । सेकहमेयं भंते ! एवं ? गोयमा ! पुलिंब से एयं एवं रोयइ, इयाणिं से एयं [ एवं नो रोयइ, एवं खलु एयं एवं ॥ ५ ॥ सेणणं भंते ! नेरइयरसवा, 'तिरिक्ख जो- ail भाव अहो भगवनू ! जीव अपनी आत्मासे अपक्रमता है या अन्य की आत्मा से अपक्रमता है. अहो गौतम ! जीव मिथ्यात्व मोहनीय चारित्र मोहनीय वेदता हवा अपनी आत्मा से अपक्रमे परंतु अन्यकी आत्मा से अपक्रमे नहीं. अहो भगवन् ! मोहनीय कर्म वेदनेनाले को पहिले पंडितपने की रुचि थी और फीर : मिथ्यात्व की रुचि हुई वह कैसे ? अहो गौतम ! अपक्रमण से पहिले अपक्रमणकारी जीव इस जीवादि पदार्थ अथवा आहिंसादि वस्तु को जैमे जिनेश्वर भगवान्ने कहीं वैसे ही श्रद्धता था; अब मोहनीय कर्म के | उदय से जीवादि पदार्थ व अहिंसादिक वस्तु को जैसे तीर्थकरने कहीं वैसे श्रद्धे नहीं इसलिये निश्चय में उक्त प्रकार से मोहनीय कम वेदते हुवे जीव स्वात्मा से अपक्रम ॥५॥ मोहनीय कर्म के आधिकार से प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी* अनुवादक-बाल 4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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