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शब्दार्थ १५० षोले कि० क्या दे० देवानुपिय अ० अथ ख• क्षत्रिय कुंडग्राम न० नगर में ई० इन्द्रमहोत्सव जा०
1 यावत् णिक जाते हैं त० तब से वे कं० कंचुकीपुरुष ज.जमाली ख० क्षत्रियपुत्र से एक ऐसा वु० बोलाये Vवे. हृष्ट तु० तुष्ट स० श्रमण भ० भगवन्त म०महावीर का आ०आगमन गगृहीत णिनिश्चय किया
क० करतल ज० जमालीको ज० जय वि• विजय से व० वधाकर एक ऐसा व० बोले णो० नहीं दे०१% देवानुपिय अ० अद्य ख० क्षत्रिय कुंडग्राम में ई० इन्द्रमहोत्सव जा. यावत् णि जाते हैं ए. ऐसे दे०
देवाणुप्पिया! अज खत्तियकुंडग्गामे णयरे इंदमहेइवा, जाव णिग्गच्छंति ? तएणं । से कंचुइज पुरिसे जमालिणामेणं खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट तुडे समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहिय विणिच्छए करयल जमालिं खत्तिय कुमारं जएणं विजएणं वडावेइ वद्धावेइत्ता एवं वयासी णो खलु देवाणुप्पिया ! अज
खत्तियकुंडग्गामे णयरे इंदमहेइवा जाव णिग्गच्छात, एवं खलु देवाणुप्पिया ! भावार्थ
धनपति वगैरह स्नान, बलीकर्म वगैरह करके जाते हैं ? कंचुकि पुरुषों ने जमाली की पास से ऐसी
न सुनकर बहुत हर्षित हुए यावत् अन्य से पूछकर उनोंने श्रमण भगवंत महावीर स्वामी का आगमन जाना और वहां ही सब लोक जाते हैं ऐसा निश्चय किया फोर हस्तद्वय जोडकर जमाली क्षत्रिय कुमारको जय हो विजय हो यों पधारकर कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! क्षत्रिय कुंड ग्राम नगर में इन्द्र महोत्सवादि
1848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
138383नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा 488
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