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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
मा०
उ०
८० द्र महोत्सव ५० पर्वत महोत्सव रु० वृक्षमहोत्सव चे० चैत्य महोत्सव थू० स्तूप महोत्सव ज० जिस से ए० ये बहुत उ० उग्रवंशी भो० भोगवंशी रा० राजवंशी इ० इक्ष्वाकुवंशी णा० ज्ञातवंशी को० कौरववंशी ख० क्षत्रिय ख० क्षत्रियपुत्र भ० भट भ० भटपुत्र से० सेनापति १० प्रशस्तार ले० लेच्छकी ब्राह्मण इ० धनपति ज० जैसे उ० उबवाड में स० सार्थवाह प० प्रभृति व्हा० स्नान कीया ज० जैसे उपवाई में जा० यात् णि० जात हैं ए० एसा सं० देखकर कं० कंचुकी पुरुष को स० बोलाकर ए० ऐसा जंणं एए बहवे उग्गा भोगा, राइण्णा, इक्खागा, णाया, कोरवा, स्वत्तिया, खातेयपुत्ता, भडा, भडपुत्ता, सेणावती, पसत्थारो, लेच्छई, माहणा, इब्भा, जहा उबवाइए, सत्थवाहप्पभितयो व्हाया कयबलिकम्मा जहा उववाइए, जाय णिग्गच्छति, एवं संपेइ संपइत्ता एवं कंचुइज्ज पुरिसे सहावेइ सहावेइत्ता एवं वयासी किंणं कूप महोत्सव, तलाव महोत्सव, नदी महोत्सव, द्र महोत्सव, पर्वत महोत्सव, वृक्ष महोत्सव, चैत्य महोत्सव, व स्तूप महोत्सव है कि जिस से बहुत उग्र, भोग, राज, इक्ष्वाकु, ज्ञात व कौरव वंशवाले क्षत्रिय, क्षत्रिय पुत्र, भट, भटपुत्र, सेनापति, प्रशस्तार लेच्छकी ब्राह्मण व धनपति वगैरह स्नान, बली कर्म वगैरह करके एक दिशी में जा रहे हैं. इस का विशेष वर्णन उबवाइ सूत्र से जानना. ऐसा विचार करके कंचुकी पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देवानुमिय ! क्या आज क्षत्रिय कुंड ग्राम नगर में इन्द्र महोत्सव यावत्
* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी
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