________________
शब्दार्थ
।
4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चार च• चच्चर जा. यावत् २० बहुत ज० मनुष्य स० शब्द ज० जैसे उ० उववाइ में जा. यावत् ए. ऐमे ५० करे प० प्ररूपे ए० ऐमे दे० देवानुप्रिय स० श्रमण भ० भगवन्त म महावीर आ०आदि के करने पाले जा. यावत् स० सर्व दर्शी मा० माहणकंड ग्राम न० नगर की ब. बाहिर ब. बहशाल चे० चैत्य में
• यथा प्रतिरूप जा. यावत् वि० विचरते हैं तं० उनको म० महाफल दे० देवानुप्रिय त० तथारूप अ०१ अरिहंत भै भगवन्त को ज. जसे उ० उबवाइ में जा० यावत् ए. एक तरफ ख. क्षत्रिय कुंडग्राम न० नगर की म० मध्य से ग० जाकर जे. जहां मा० माहणकुंड ग्राम १० नगर जे. जहां ब• बहुशाल पण्णवेइ एवं परूवेइ, एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स णयरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडि: रूवं जाव विहरइ, तं महप्फलं खलु देवाणुप्पिया ! तहा रूवाणं अरहंताणं भगवंताणं जहा उववाइए जावएगाभिमुहे खत्तियकुंडग्गामं गयरं मझं मझेणं णिगच्छइ २ त्ता, जेणेव
माहणकुंडग्गामे णयर जेणेव बहुसालए इए एवं जहा उक्वाइए जाव तिविहाए यावत् बहुत मनुष्यों एकत्रित होकर ऐसा वार्तालाप करने लगे कि आदिकर यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ब्राह्मण कंड नगर की बाहिर बहशाल चैत्य में यथोक्त आज्ञा ग्रहण कर विचरतेहैं. इस लिये अहो देवानुप्रिय ! तथारूप श्रमण भगवंत का नाम गोत्र श्रवण करने से महाफल होता है यावत् उन के मुखारविंद से विपुल अर्थ ग्रहण करने का तो कहना ही क्या ? ऐसा सुनकर बहुत मनुष्य
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ