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शब्दार्थ ब. बक्षीस विध ना० नाटक से णा नानाविध व. प्रधान त० तरुणी से सं० घेराये हुवे उ० नृत्य करते है ।
० उ० गुणग्राम करते उ० लालित्य करते पा० प्रावृट् वा वर्षा काल स. शरद् हे। हेमन्त स० शिशिर व011 Vवसन्त गि० ग्रीष्म प० पर्यंत छ. छ उ० ऋतु ज. जैसे वि० वैभव मा० अनुभवते का० काल को #वितावे इ० इष्ट स० शब्द फ० स्पर्श र० रस रू० रूप गं० गंध पं० पांच प्रकार के का० काम भोग ५० अनुभवते वि. विचरते हैं ॥ २१ ॥ त० तब ख० क्षत्रियकुंड ग्राम में सिं० सिंघाडे जैसे ति. तीन च०
णाणाविह वरतरुणी संपउत्तेहिं उवणचिजमाणे, उवणचिजमाणे, उवगिजमाणे उवगिजमाणे, उवलालिजमाणे उवलालिजमाणे, पाउसवासारत्त सरद हेमंत ससिर । बसंतगिम्हपजंते छप्पिउऊ जहा विभवेणं माणमाणे कालं गालेमाणे इतु सद्दे फरिस रसरूव गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगेपच्चणुब्भवमाणे विहरइ ॥२१॥तएणं खत्तियकुं
डग्गामे णयरे सिंघाडग तिगचउक्क चच्चर जाव बहुजण सद्देइवा जहा उववाइए जाव एवं . भावार्थ वाले, विविध देश की प्रधान तरुणियों से बत्तीस प्रकार के नाटकों मे नृत्य कराते हुवे गीत कराते हुवे,
अतिरसभर नृत्य गायन कराते हवे, प्रावट, [वर्षा] शरद, हेमन्त, शिशिर, वसंत, व ग्रीष्म इन छ ऋत के | यथायोग्य काल व्यतिक्रमते हुए, इष्ट, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गंध ऐसे पांच प्रकार के मनुष्य संबंधी
कामभोग भोगवते हुवे विचरते थे ॥२१॥ उस समय में क्षत्रिय कुंड नगर में शृंगोटक, त्रिक, चौक, चञ्चरई ,
- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
48 नवधा शतकका तेत्तीमत्रा उद्देशा 4882