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शब्दार्थ
अनुवादक-बालबाह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
त० तब सा० वह दे० देवानंदा आ० आर्या अ. आर्या चंदना की अं०. पास सा० सामायिकादि ए० । अग्यारह अं अंग असिखे से शेष तं० तैसे जा. यावत् स सर्व दुःख से ५० मुक्तहई ॥२०॥ तक उस मा० ब्राह्मण कुंड न० नगर की प. पश्चिम में ख० क्षत्रियकुंड ग्राम न. नगर हो. था। वर्णनयुक्त तः उस ख. क्षत्रिय कुंडग्राम में न • जमाली ख० क्षत्रिय कुमार प० रहता है अ० ऋद्धिवंत दि० दिप्त जा. यावत् अ० अपरिभूत उ० उपर पा प्रासाद की रहे हुवे फु० फुटता मु० मृदंग के मस्तक से
सा देवाणंदा अज्जा अज्जचंदणाए अजाए अंतियं सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजइ, सेसं 'तंचेव जाव सव्व दुक्खप्पहीणा ॥२०॥ तस्सणं माहण कुंडग्गामस्स णयरस्स पच्चच्छिमेणं एत्थणं खत्तियकुंडग्गामे णाम णयरे होत्था वण्णओ ॥ तत्थणं खत्तियकुंडग्गामे णयरे जमाली णाम खत्तियकुमारे परिवसइ, अड्डे दित्ते जाव अपरि
भए उप्पिं पासायवरगए फुटमाणेहिं मुयंगमत्थएहिं बत्तीसइव हिं नाडएहिं ॥ १९ ॥ देवानंदा आर्याने आर्या चंदन बाला की पास से अग्यारह अंग का अध्ययन करके यावत् सब दःख से रहित हई ॥ २० ॥ उम ब्राह्मण कुंड नगर की पश्चिम दिशा में क्षत्रिय कुंड नामक नगर था, उसमें क्षत्रिय कुंड नगर में जमाली नामक क्षत्रिय कुमार रहता था. वह ऋद्धिवंत दीप्तिवंत यावत् अपराभूत था. अपने महेल के ऊपर की भूमिका में बैठे हुए अतिवेग से आस्फालन करने से फुटते हुवे मादल के मस्तक
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी
भावार्थ