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शब्दार्थ)
सूत्र
भावार्थ |
488+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
को स० स्वयं प० दीक्षा देकर स० स्वयं अ० आर्यावंदना को सी० शीष्यपना से द० देवे ॥ १८ ॥ त० तब सा० वह अ० आर्या चं० चंदना दे० देवानंदा मा० ब्राह्मणी को स० स्वयं से सिखावे ए० ऐसे ज० जैसे उ० ऋषभदत्त त० तैले अ०आर्या चंदना से ए० इसरूप ध० धर्म का उ० उपदेश स०सम्यक् प० { अंगीकार करे त० उन की आ० आज्ञा को ग० जावे जा० यावत् सं० संयम से सं० प्रवर्ते ॥ ११ ॥
सयमेव पवावेइ पव्वावेइत्ता सयमेव अज्जचंदणाए अज्जाएं सीसिणित्ताए दलयति ॥ १८ ॥ तणं सा अज्जचंदणा अज्जा देवाणंदा माहणिं सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, एवं जहा उसभदत्तो तहेत्र अज चंदणाए अजाए इमं एयाणुरूवं धम्मियं उवदेसं सम्मं पडिवज्जइ, तमाणाए, तहगच्छइ, जाव संजमेणं संजमेइ ॥ १९ ॥ तणं
करके ऐसा बोली की अहो भगवन् ! || १७ || फीर देवानंदा ब्राह्मणी को बाला की शिष्या बनाई ॥ १८ ॥
यह वही है यह तथ्य है वगैरह ऋषभदत्त ब्राह्मण जैसे कहना श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने दीक्षा दी और आर्या चंदन आर्या चंदनवाला ने देवानंदा ब्राह्मणी को मुंडित की और अपनी शिष्या बनाइ वगैरह ऋषभदच ब्राह्मण जैसे आर्या चंदनबाला से धार्मिक उपदेश सम्यक् प्रकार से अंगीकार किया. और उन की आज्ञा में यावत् संयन व तप से आत्मा को भारती हुई विचरने लगी
१०१ - नवत्रा शतक का तेत्तीसका उद्देशा
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