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________________ १३५२ शब्दार्थ + अनशन छे० छेदकर ज० जिस केलिये की० कीया न० नग्नभाव जा० यावत् तः उस अर्थ को आ० आराधकर जा० यावत् स० सर्व दुःख ५० दूरकीये ॥ १६॥ त० तब मा. वह दे० देवानंदा मा०ब्राह्मणी स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर की अं० पास ध. धर्म सो० मूनकर नि० अवधारकर ह० हृष्ट स० श्रमण भ. भगवन्त म. महावीर को ति० तीनवक्त आ० आदान ५० प्रदक्षिणा जा. यावत् ण. नमस्कार कर एक ऐसे ए. यह भ० भगवन् त० तथैव ए. ऐसे ज० जैसे उ० ऋषभदत्त त० तैसे जा यावत् ध० धर्म आ० कहे ॥ १७ ॥ त तब स० श्रमण भ० भगवन्त महावीर दे देवानंदा मा०ब्राह्मणी छदेइ २ त्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव तमटुं आराहेत्ता जाव सव्वदुक्ख. प्पहीणे ॥ १६ ॥ तएणं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्ठ तुट्ठा समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं जाव णमंसित्ता एवं वयासी एवमेयं भंते ! तहमेय भंते ! एवं जहा उसभदत्तो तहेव जाव धम्ममाइक्खइ ॥ १७ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे देवाणंदा माहणिं भावार्थ खूनी और साठ भक्त अनशन करके जिस कार्य के लिये नग्नभाव किया था उस का आराधन करके यावत् सर्व दुःख रहित हुए ॥ १६ ॥ फीर श्रपण भगवंत महावीर की पाम धर्म श्रवण कर देवानंदा ब्राह्मणी हृष्ट तुष्ट बनी हुई श्रमण भगवंत महावीर स्वापी को तनिवक्त आदान प्रदक्षिणा यावत् नमस्कार 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी पनि श्री अमोलक ऋषिजी प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * .
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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