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________________ शब्दार्थ 488 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र १०१ व बोला अ. अलिप्त भ० भगवन् लो० लोक ५० प्रलिप्त भं० भगवन् लो० लोक ज० जरा म.. मरण से ए०ऐसे ए. इस कक्रम से जो खंस्कंदक त तैमे प. प्रत्रजित जा. यावत् सा. सामा300 यिकादि ए० अग्यारह अं० अंग अ० सीखे जा. यावत् ब. बहुत च० चतुर्थ छ० छठ अ० अठम दर दशम जा० यावत् वि० विविध तक तप कर्म में अ. आत्मा को भा० भावत ब. बहुत व० वर्ष सा० साधु पर्याय पा० पालकर मा० मासकी सं० संलेखना से अ० आत्मा को अ० असकर स० साठ भ० भक्त अ० आदाहिणं पयाहिणं जाव णमंसित्ता एवं वयासी अलित्तेणं भंते ! लोए पलित्तेणं भंते ! लोए जराए मरणेणय एवं एएणं कमेणं जहा खंद) तहेव पव्वइए जाव सामाइय माइयाइं एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, जाव बहूहिं चउत्थ छट्ठट्ठम दसम जाव विचित्तेहिं तवो कम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सामण्ण परियागं पाउणइ २ त्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसइ, मासि० २ त्ता सर्टि भत्ताई अणसणाई जाकर तीन आदान प्रदक्षिणा यावत् नमस्कार करके ऐसा बोला कि अहो भगवन् ! यह लोक अलिप्त प्रलिप्त है जरामरण वगैरह ऐसे क्रम से जैसे स्कंदकने प्रबर्ध्या अंगीकार की वैसे ही प्रवा अंगीकार की यावत् सामाधिकादि अग्यारह अंग का अध्ययन करके बहुत चतुर्थ छठ अठम दशम यावत् विचित्र प्रकार के तप कर्म से आत्मा को भावते हुए बहुत वर्ष साधु की पर्याय पालकर मासिक संलेखना से आत्मा को 4004028 नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा80p
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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