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शब्दार्थ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
पु० पूर्व पुत्र सि• स्नेह का अ० अनुराग से आआया हुवा १०प्रस्रव वाली जा. यावत् स उलसित रोक रोमांच वाली म० मुझे अ० अनिमीष ददृष्टि से दे० देखती चि० खडी रही है ॥१४॥ त० तब स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर उ० ऋषभदत्त मा० ब्राह्मण दे. देवानंदा मा० ब्राह्मणी को ती. उस म०बडी परिषदा इ. ऋषिपरिषदा में जा. यावत् प० परिषदा ५० पीछीगई ॥ १५ ॥ त० तब वह उ० ऋषभदत्त मा० ब्राह्मण स. श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर की अं० पास से ध० धर्म सो० श्रवणकर
माहणी तेणं पुव्वपुत्तसिणेहाणुरागणं आगयपण्हया जाव समुस्ससियरोमकूवा ममं अणमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २ चिट्ठइ ॥ १४ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदाए माहणीए तीसेयं महइ महालियाए इसिपरिसाए जाव परिसा पडिगया ॥ १५ ॥ तएणं से उसभदत्ते माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स
अंतियं धम्म सोचा णिसम्म हट्ठ तुटे उट्ठाए उठेइ २ त्ता समणं भगवं महावीरं । उन का आत्मज (पुत्र ) हूं. इससे पूर्व पुत्र का स्नेहानुराग से देवानंदा ब्राह्मणी को स्तन में पयः आया यावत् रोम खडे हुवे और मुझे मेषोन्मेष देखने लगी ॥ १४ ॥ फीर श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ऋषभदत्त ब्राह्मण व देवानंदा ब्राह्मणी को उस बड़ी परिषदा में धर्म कथा सुनाइ यावत् परिषदा पीछी है गई ॥ १५ ॥ फीर ऋषभदत्त ब्राह्मण श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास से धर्म श्रवण कर हृष्ट ।
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542 नववा शतकका तेत्तीसवा उद्देशा6448
भावार्थ
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