________________
-
शब्दार्थ
३४८
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
श्रमण भ• भगवन्त म० महावीर को 4. वंदनकर न० नमस्कार कर ए० ऐसा व० बोले ए० यह दे.* देवानंदा मा ब्राह्मणी आ० आया हुवा प. प्रस्रव वाली तं• तैसे जा यावत् रो• रोमांच दे० देवानुप्रिय को
० अनिमिष दि० दृष्टि से दे० देखती चि० खडीरही ।। १३ ॥ गो० गौतमादि स० श्रमण भ० भगवन्तम म. महावीर गो. गौतम को ए. ऐसा क. बोले ए. ऐसे ख. खलु गो. गौतम दे. देवानंदा मा०४ ब्राह्मणी म मेरी अ० माता अ० मैं दे० देवानंदा का अ० आत्मज त०तब सा०वह दे० देवानंदा ते. उस
नमंसित्ता एवं वयासी किं णं भंते ! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया तंचेव । जाव रोमकूवा, देवाणुप्पिए अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २ चिट्ठइ ? ॥ १३ ॥ गोयमादि ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! ,
देवाणंदा माहणी मम अम्मगा अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए,तएणं सा देवाणंदा (कंकण ) तंग होगये, कंचुकी की कसो टूट गइ, मेघधारा से हणाया हुवा कदम वृक्ष समान गेम होगये । और श्रमण भगवंत महावीर को मेषोन्मेष देखने लगी ॥ १२ ॥ तव श्री गौतम स्वामी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! किस कारन से देवानंदा ब्राह्मणी को स्तन में पयः आया यावत् रोम खडे होगये और आप को मेषोन्मेप देखने लगी? ॥ १३ ॥ तब श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ऐला बोले कि हो गौतम! देवानंदा ब्राह्मणी मेरी माता है और मैं
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ