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शब्दार्थ14
न० नमस्कार कर उ० ऋषभदत्त मा. ब्राह्मण को पु० आगे क. कर के ठि० खडीरह कर स. परिवार है। १० सहित सु० सेवा करती ण. नमस्कार करती अ. अभिमुख वि० विनय से पं० हस्त जोडकर प० पर्य
पसनाकरे ॥ ११ ॥ त० तब सा. वह दे० देवानंदा मा० ब्राह्मणी आ० आयाहुवा प० प्रस्रव १० आनं-139 दित लो० लोचन वाली सं० संवृत ब. बलयोंसे बा०बाहुवाली कं० कंचुकी प० फेंकाइहुइ धा०धारासे ह. हणाया क. कदम्ब पुष्प जैसे स० उलसित हुवे रो रोमांचवालीस श्रमण भ. भगवन्त म० महावीर को अ० अनिमिष दि० दृष्टि से दे० देखती चि० खडी रही ॥ १२ ॥ भ० भगवान् गो० गौतम स०
दत्तं माहणं पुरओ कटु ठियाचेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासइ ॥ ११ ॥ तएणं सा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया पप्फुयलोयणा संवरियवलियवाहा, कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहतकलंबपुप्फगंपि वसमुस्ससियरोमकूवा, समण भगवं महावीरं आणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी २
चिट्ठइ ॥ १२ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता स्वयं पीछे परिवार सहित सुश्रूषा व नमस्कार करती हुई विनय से हस्तद्वय जोडकर सन्मुख उपस्थित 3 रहकर पर्युपासना करने लगी ॥ ११ ॥ तब देवाांदा ब्राह्मणी को स्नेह भाव की वृद्धि होने से स्तन में 1 पयः आया, नेत्र प्रफुल्लित होकर पानी से भरे गय अधिक हर्ष होने से शरीर स्थूल होगया हाथ के बलये
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 48
नववा शतकका तेनीसवा उद्देशा 98
भावार्थ
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