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________________ ब्दार्थ.जा जा. यावत् म० महत्तरीक से प० घेराइ हुइ स. श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को पं० पांच प्रकार के अ० अभिगम से अ० जावे तं० वह स. सचित्त द. द्रव्य वि० त्यजकर अ. अचित्त द्रव्य अ० रख कर वि०विनय. से न० नमे हवेगा० गात्र लष्टि च. चक्षस्पर्श से अं० अंजलि जोडकर म०मनसे ए०एकत्व भा० भाव क० करने से जे. जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ते० तहां उ० आकर स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर को ति० तीनवार आ० आदान प०प्रदक्षिणा क. कर के वै. वंदन कर खुजाहिं जाव महत्तरग परिस्खित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं आभिगमेणं आभिगच्छइ,तंजहा सचित्ताण दव्वाणं विउसरणयाए,अचित्ताणं दव्वाणं अविभोयणयाए, विणओणयाए गायलट्ठीए, चक्खुप्फासे, अंजालपग्गहेणं मणसोएगत्तीभावकरणेणं जेणेव समण भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आदाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता उसभभावार्थ महावीर स्वामी की सन्मुख गई. उन पांच आभिगम के नाम. १ सचित्त द्रव्यों का त्याग करना. २ अचित्त द्रव्यों वस्त्रादि का त्याग नहीं करना ३ विनय से गात्रों को नम्र बनाना ४ चक्षुस्पर्श होते हस्तद्वप जोडकना और ५ मन से एकत्व भाव करना. ऐसे पांच अभिगमले श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पाम, जाकर तीनवार आदान प्रदक्षिणा की और वंदना नमस्कार करके ऋषभदत्त ब्राह्मण को आगे किया है। अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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