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शब्दार्थ
१४ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
विनय वाली से चे० दासी च : समुह १० वर्षधर थे स्थविर के० कंचकीय म° महत्तरिक वि० वृंदसे प० * घेराइ जा०. यावत् अं• अंतःपुरसे णि• नीकलकर जे. जहां बा० बाहिर उ० उपस्थान शाला जे. जहां थ. धार्मिक जा० यान प्रधान ते० तहां उ० आकर जा. यावत् ध० धार्मिक जा० यान १० प्रवर दु० चही ॥२॥ त० तब से वह उ० ऋषभदत्त मा० ब्राह्मग दे० देवानंदा मा० ब्राह्मणी स० साथ ध० धार्मिक जा. यानप्रबर दु० चढा हुवा णि निजके प० परिवार से सं० घेराया हुवा मा० माहण कुडग्राम ।
चेडियाचकवालवरिसधरथेर कंचुइज्ज महत्तरगविंद परिक्खिसा, जाव अंतेउराओ णिग्गच्छइ २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण साला जेणेव धाम्मए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छ३ २ त्ता जाव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा ॥ ९ ॥ तएणं से उसभदत्ते
माहणे देवाणंदा माहणीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढेमाणे णियगपरियालअन्तःपुरसे नीकलती हुइ बाहिरकी उपस्थान शाला [ दिवानखाना में ] धार्मिक प्रधान रथ की पास आइ,
और उस में बैठो. ॥ ९ ॥ देवानंदा की साथ ऋषभदत्त ब्राह्मण आरूढ हुए पीछे अपने परिवार से परवरे हुवे ब्राह्मणकुंड नगर की मध्यबीच में होकर बहुशाल नामक चैत्य में आये. वहां तीर्थंकर के छत्रादि अतिशय देखकर धार्मिक प्रवर रथ को रोका और उस में नीचे उतरे. फीर सचित्त ठव्य पुष्प ताम्बुलादि अलग रखना यों जैसे दुसरे शतक में कहा वैसे ही पांय अभिगमन से भगवन्त की सन्मुख गये यावत्
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *