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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
803 पंचमंग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 42
कि० कर्म उ० उदय से के उअंगीकारकरे हं०हां गो० गौतम उ० अंगीकारकरे सेव्वह भगवन किं० क्या वी० १ वीर्यपने उ० अंगीकार करे अ० अवीर्यपने उ० अंगीकार करे गो० गौतम वी वीर्यपते उ० अंगीकार करे णों नहीं अ० अवीर्यपने उ० अंगीकार करे ज० यदि बी० वीर्यपते उ० अंगीकार करे कि क्या बा० (बॉल वीर्यपने उ० अंगीकार करे पं० पंडितवीर्य पजे उ० अंगीकार करे वा० बाल पंडित वीर्यपने उ०
णं उबट्टाएजा ? हंता गोयमा ! उबट्टाएजा । से भंते! किं वीरियत्ताए उबट्टाएजा, अवीरित्ताए उबट्टाएजा ? गोयमा ! वीरयत्ताए उबट्टाएजा णो अवरियताए उट्ठाएजा ॥ जइ वीरियत्ताए उबट्टाएजा, किं बाल वीरियत्ताए उबट्टा एज्जा, पंडित वीरित्ताए उवट्टाएजा, बालपंडित वोरियत्ताए उबट्टाएजा ? गोयमा ! बाल वीकर्मों के उदय से क्या जीव परलोक क्रिया अंगीकार करे अर्थात् अन्य दर्शनी बने ? हां गौतम ! अन्य (दर्शनी बने. अहो भगवन् ! जीव वीर्य सहित अन्य दर्शन अंगीकार करे अथवा वीर्य रहित अंगीकार करे ? अहो गौतम ! जीव वीर्य से परलोग किया करकरे परंतु वीर्य रहितपने अंगीकार करे नहीं. अहो भगवन् ! यदि वीर्य से परलोक क्रिया अंगीकारकरे तो क्या बल वीर्य से, पंडित वीर्य से अथवा बालपंडित वीर्यं से परलोक क्रिया अंगीकार करे ? अहो गौतम ! मिथ्यात्व के उदय से मिथ्यादृष्टिपना से जीव को जो बाल वीर्य स्थिर रहता है उस से ही अन्य दर्शन अंगीकार करता है, पंडित
पहिला शतक का चौथा उद्देशा 80
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