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शब्दार्थ | क० कितनी मं० भगवन् क० कर्म प्रकृति प० मरूपी गो० गौतम अ० आठ कर्म प्रकृति १० मरूपी क० कर्म प्रकृतिका प० पहिला उद्देशा ने० जानना जा० यावत् अ० अनुभाग क० प्रकृति क० कैसे बं० बांधे क० कितने ठा० स्थानमें बं० वांधे प० प्रकृति क० कितनी वे अनुभाग क० कितना प्रकारका क० किसका ॥ १ ॥ जी० जीव मं० भगवन् मो०
सूत्र
भावार्थ
८३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
कितनी क० कर्म
वेदे १० प्रकृति अ० मोहनीय कः कीये
कतिणं भंते ! कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्म पगडीओ पण्णत्ताओ, । कम्म पयडीए पढमोउदेसो नेयव्वो || जाव अणु भागो सम्मत्तो ॥ गाहा -कति पगडी कहिं बंधइ । कतिहि ठाणेहिं बंधए पगडी || कइ वेदेइ च पगडी । अणुभागो कतिविहो कस्स ॥ १ ॥ १ ॥ जीवणं भंते ! मोहणिजेणं कडेणं कम्मेणं उदिष्णे
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुवदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
गत उद्देशे में कर्म की वेदना उदीरणा आदिका कथन किया है. अब इस उद्देशे में कर्म का स्वरूप } बताते हैं. अहो भगवन् ! कितनी कर्म प्रकृतियों कही ? अहो गौतम ! कर्म की मूल आठ प्रकृति कही. इन का विस्तार पूर्वक कथन पन्नाणा सूत्र के तेत्तीमत्रा पद के प्रथम उद्देशे में कहा है. उस में अनुभाग तक का जानना. उस का संक्षेप में अर्थ बतानेवाली संग्रह गाथा कहते हैं. १ कितनी कर्म प्रकृतियों २ प्रकृति कैसे बांधे ३ कितने स्थानक में प्रकृति बांचे, ४ कितनी प्रकृति वेदे और ५ कितने प्रकार का अनुभाग होवे ऐसे पांच द्वार कहे हैं ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! मिध्यात्व मोहनीय से कराये हुवे
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