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शब्दार्थ मतांतरसे भं० भंगोके अंतरंसे णः नयांतर से णि नियमांतरसे या प्रमाणांतरसे सं० शंकित कं. वांच्छा
वाला वि० संदेह वाला कं० कांक्षा मोहीय कर्मवे. वेदे ॥ १७॥ भं. भगवन तं० वहही स० सत्य नी०१४ शंकाराहित जा. यावत् पु० पुरुषात्कार पराकर .. वह ए० एसेमं. भावन् ॥१॥३॥ * .
णयंतरहिं. णियमंतरेहिं. पमाणंतरेहिं. संकिया कंखिया, वितिगिन्छिया. भेदसमावण्णा. कलुससमावण्णा, एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा मोहणिजे कम्मं वेदंति ॥ १७ ॥ सेणूणं भंते ! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइय? हंता गोयमा तमेव सच्चं नीसंकं एवं जाव पुरिसक्कार परक्कमइवा ॥ सेवंभंते मते ! त्ति पढमसए तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ ३ ॥
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. + यिकादिक का प्रत्याख्यान है तो पहरसी वगैरह की क्या विशेषता है ऐसी शंका करे १३ प्रमाणान्तर सेप्रयक्ष प्रमाण व आगम प्रमाणमें भेद क्यों ? आगम प्रयाण मे मूर्य ८०० योजन ऊंचे उदित होता है और चक्ष दृष्टि से जमीन में से नीकलता हुवा दीखता है इम में शंका उत्पन्न होवे. इस तरह तेरह प्रकार की शंका उत्पन्न होवे. मिथ्या दर्शन की वांच्छा होवे, धर्म करणी में फटका मंदेड लावे, सस अल-ई इत्यका भेद करे, मतिर ह.ने से कानुयलामाले बने, इसी कारण से श्रमण निग्रंथ कांक्षा मोहनीय कर्म
ईवेदत हैं॥ १७ ॥ अहो भावन ! जा जिन भगवान ने प्ररूपा है वह सस है ? हां गौतम ! जो जिनई on भगवानने प्ररूपा है वहरी नि:शंक सस है. एसे ही पुरुषात्कार पराक्रमतक कहना. श्री गौतम स्वामी कहते
हैं कि अहो भगवन ! जैसे आप प्ररूपते हैं वह सब सत्य है. यह पहिला शवकका तीसरा उद्देशा.
40988 पंचपाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
8. पहिला शतकका तीसरा उ दशा