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शब्दार्थ 4 जु० युक्त जो० योगवन्त ए० मम खु. खुर वा० पूंछ स० सम लि. लखित सिं० श्रृंग #० जाम्बूनदमय
क० कलापयुक्त ५० परिविशिष्ट र० रजतमय घं० घंटा सु० सूत्र र० रज्जु प. प्रधान कं. कंचन ण. नाथ ५० प्रगह अ० अवग्रहीत पी. नीलोत्पल क• कृत भा० शेखर प० प्रवर गो. बेल जु० युवान णा० नानामणिमय घ. घण्टिका जा. जाल ५० परिगत सु. सुजात जु० युग्म जु• युक्त र० रज्जु जु० युग १० प्रशस्त सु० सविरचित नि० निर्मित प० प्रधान ल• लक्षणोपगत ध. धार्मिक जा. यान १०
देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्तजोइय समखुर वालिहाणं समालहियसिंगेहिं, जंबूण
यामय कलावजुत्त परिविसिटेहिं रययामयघंट सुत्तरज्जुपवर कंचणणत्थ पग्गहोग्गहै हियएहिं णीलुप्पलकयामेलएहिं पवरगोण जुवाणएहिं णाणामाणमयघंटिया जाल
परिगत सुजातजुग्ग जुत्त रज्जुय जय पसत्थ सुविरचिय निम्मिय पवर लक्षणोववेयं । भावार्थ
पुंछवाले, मम शृंगवाले, सुवर्णमय कण्ठाभरणवाले, वेगादि गुनों से युक्त, रूप्यमय घण्टावाले, मूत्रमय रज्ज (रस्सी) की प्रधान सुवर्ण विज्ञान मांडत नथवाले, नील वर्णवाले कमल से बनाये हुवे शिखरवाले और श्रेष्ठ ऐसे दो तरुण वृषभ से जोता हवा नाना प्रकार की मणि रत्नमय घण्टिका की प्रधान जालवाला.. प्रशस्त काष्टमय झुंसरवाला, और जोन पाटा व सुग्य सहित ऐसा धार्मिक रथ तैयार करो और मुझे मेरी
१ धर्म कार्य के लिये जाने का रथ.
88* पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र <282
Pagp><नववा शतक का तेत्तीसवा उद्देशा 9887